नव लय

नव लय 

थके-हारे विगत वर्ष ने ली इक जम्हाई
आगत की कगार ने नव वर्ष की सुबह है लाईं।
अतीत का क्षत-विक्षत समय भुलाकर
नव प्रभात की नई उम्मीदें मन में हैं मुस्काईं
अनाचार अब नहीं चलेगा, बहुत हुआ
समय ने जन-जन की अन्तर्आत्मा है जगाई।
मन मुदित हुआ है स्वयं ही विचार
हमने कर्मण के पहल की अलख है जगाई।
आईने में धुंधला गए थे जो अक़्स
गर्दिश के दिन भुला नव आस है दिखलाई।
असहिष्णुता को दूषित हवा संग बहा
समझ के संग , विनम्र सहिष्णुता है लाई।
किसानों की आशाओं के दीप जलेंगे
ऐसी कोमल भावनाएं हर जन में हैं समाई।
शुभ कर्मण के पौधे धरा में फूटें
नव लय, नव गति भारत की हवा में लहराई।।

वीणा विज’उदित’

 

 

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