नमन मां

नमन मां !

सांसों का स्पंदन है मां

माथे का चंदन है मां

दर्द से आरंभ हुआ था यह रिश्ता

कोख से ही बना था जीवन अपना

उसी ने कराई थी मेरी मुझसे पहचान

कर्म सिखाएं ऐसे बना वंश का अभिमान

मन का दृढ़ विश्वास है मां

हर बच्चे की आस है मां

जाने किस रब्ब को पूजती मां हर दिन

मां की चिंता में,ध्यान में रहता यह दिल

कांटा चुभता तो’ उई मां’ मैं उच्चारता

पीड़ा से जब तड़पता” मां” मैं पुकारता

मेरे क्रोध को सहती मां

भूलें भूल गले लगाती मां

स्त्रोतस्विनी देती जीवन को नए प्रतिमान

देश रहूं परदेस,मुझ में रहता तेरा ध्यान

हृदय आसन पर बिठा मेरी मांगती ख़ैर

तेरे दिए संस्कार मुझमें पसारे बैठे पैर

प्राणों का वंदन है मां

शत-शत नमन है मां!

वीणा विज’उदित’

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