तीन चौक्के

मानवीय पीड़ा , संवेदना के सूक्ष्म स्तरों को झेलते—-

“तीन चौक्के”

हल्की सी सिहरन हुई और ” पैम” की आंख खुल गई। लगा पौ फटने में देर है। फिर भी सामने दीवार पर लगी घड़ी को देखा 4:44 थे। मानो दिमाग की घड़ी भी तीन चौकों पर जाकर थम गई थी।
रात पार्टी में पैग पर पैग लग रहे थे। इन चारों प्रवासी कपल्स का अपना ग्रुप था। हफ्ते के 5 दिन तो सभी अपने अपने प्रोफेशन मैं व्यस्त रहते थे लेकिन शुक्रवार की रात गेट टुगेदर होना ही होता था किसी ना किसी बड़े मशहूर होटल में उनकी हैसियत के अनुसार। जिसका जो जी चाहे
खाने का आर्डर या ड्रिंक आर्डर करें। लेडीस के भी अपने ड्रिंक्स और वाइंस थीं। बारी बारी से सब पेमेंट करते रहते थे क्योंकि पैसे की कमी किसी को नहीं थी। भारतीय मानसिकता होने के कारण महंगी- महंगी डिशेज का आर्डर दिया जाता था, जिससे superiority complex बना रहता था।
इन भारतीय लोगों ने अमेरिका आने के बाद दोबारा पढ़ाई करके अपना एक मुकाम हासिल किया था। अमेरिकन कानून बढ़िया है । डॉक्टर का अर्थ है— मल्टीमिलेनियर होना। क्योंकि हर नागरिक को मेडिकल इंश्योरेंस वहां लेनी ही होती है। फिर बीमारी का क्या भरोसा -? बिना द्वार खटखटाए पहुंच जाती है भीतर। उसके आने पर बंदे की नाव का खेवनहार डॉक्टर ही होता है ।और पैसों का भुगतान करती हैं इंश्योरेंस कंपनियां। वहां के डॉक्टरों पर लक्ष्मी कृपा इन्हीं के दम पर बनी रहती है। इनमें भी अधिकतर डॉक्टर्स थे।
पिछली रात डा. करण के बेटे आकाश की ग्रेजुएशन पार्टी थी। पार्टी के पश्चात, सभी दोस्तों के हम उम्र बच्चे इकट्ठे होकर पब चले गए थे और यह चारों कपल्स अपनी जवान शाम को रंगीन बनाने के लिए Hotel Imperial में पहुंच गए थे। इस नेक काम को होने में देर नहीं लगी क्योंकि माहौल में मस्ती छाई हुई थी। राजन एक से बढ़कर एक नॉनवेज जोक्स सुना रहा था हमेशा की तरह । जिन पर डा. सनी,डा. करण और मीत पंजाबी में मां बहन की गालियां बोल- बोल कर दाद दे रहे थे।
राजन के भीतर मानो जोक्स रूपी कारू का खजाना जमा रहता था। बढ़ते-बढ़ते यह जोक्स संता- बंता का रूप धर लेते थे। करण की बिन्नी खिलखिलाते हुए अपने दाएं पट पर हाथ मारती , तो उसका बिना स्ट्रेप का गाउन कुछ और नीचे सरक आता था। करण को छोड़ बाकी तीनों मर्दों की नजर वहां जाकर ठहर जाती थी। वैसे भी अपनी थाली का लड्डू किसे स्वाद लगता है ? जीभ ललचाती है दूसरे की मिठाई के लिए। हाथ में महंगी वाइन का गिलास लिए बिन्नी तो वैसे भी गिरी जा रही थी अपने डॉक्टर पति करण की ओर।
अनु और आयशा के साथ डा.पैम भी हाथों में वाइन के गिलास लिए आंखों में गुलाबी डोरे सजाए हुए थी। मीत सिगरेट से धुएं के छल्ले छोड़ रहा था अपनी आयशा के मुंह पर ! कि तभी आयशा ने उसके मुंह से सिगरेट निकाल कर अपने मुंह से लगा ली थी…!
ऐसे होटल दिन रात चलते हैं । दिन में वहां मीटिंग्स और conferences होती हैं । लेकिन इनके जैसे कस्टमर तो दिन को सोए रहते हैं— रात की खुमारी मिटाने के लिए । सो, यहां रातें जागती हैं -किस्से गढ़ती हैं! और दिन सोते हैं लंबी तान कर।
हां, तो 4:44 पर जब पैम की नींद खुली तो देखती है कि होटल के जिस कमरे में वह थी, वहां पलंग पर सनी की जगह मीत ‌सोया हुआ है बेहोश। वह देखकर हैरान थी कि सनी कहां रह गया? उन लोगों को इतनी अधिक चढ़ गई थी कि कौन किसके कमरे में किसके साथ जा रहा है कुछ होश ही नहीं था। उसे लगा घड़ी के तीन चौके उससे कह रहे हैं कि संभल जा — अभी भी वक्त है…!
अनु कहां गई होगी ? और उसका सनी भी नहीं है। उसने झट से जाकर रेस्ट रूम में अपने आपको फ्रेश किया । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वह कैसे मीत के संग आ गई थी। लेकिन इस ग्रुप में सब संभव था। सबको इतनी ज्यादा चढ़ गई थी कि किसी को कोई होश नहीं था। छुट्टी का दिन था उसे मालूम था कि मीत 12:00 बजे से पहले नहीं उठने वाला है। उसने अपनी कार की चाबियां पर्स में देखीं और पार्किंग लॉट से अपनी कार लेकर घर की ओर निकल गई।
वह सोच रही थी सनी भी अभी नींद में होगा ना मालूम बेहोश सा किसके साथ और किस रूम में ? वह तो होटल रूम्स की तलाशी नहीं लेने वाली थी किसी भी हाल में! सब के पास अपनी-अपनी गाड़ी थी। कोई सीधे काम से आया था तो कोई घर से आया था पार्टी में।
महानगरीय जीवन की विकृतियां जिनकी व्यंजना होती है—-बियर, वाइन के घूंट से गले तर करतीं और सिगरेट का धुआं उगलती औरतें—! उसे नहीं पसंद यह जीवन शैली लेकिन… वह जाए भी तो कहां जाए?
वह सोचे जा रही थी कि जीवन जीने का इन सब का यही रवैया है। अभी तो बच्चों का भी कुछ इल्म नहीं है किसी को , कि वे कहां हैं ? यहां के नियम ही कुछ ऐसे हैं कि बच्चे व्यस्क हुए नहीं कि पूरी आजादी मिल जाती है। कई बार इतनी आजादी बच्चों से संभलती भी नहीं और बहकने के समय, नियम ताक पर धरे रह जाते हैं।
हमेशा की तरह घर पहुंचकर वह भी सोने लगी थी । क्योंकि अगली रात भी ऐसी ही बीतनी थी। भारत की तरह यहां कोई पूछने वाला नहीं था। खाली- खाली दीवारें, कमरे, खाली- खाली बिस्तर उसे मुंह चिढ़ाता हुआ। पूरा घर ही खाली और भीतर भी खोखलापन। क्या यही चाहती थी वो –? — नहीं! नहीं! नहीं! नहइईईई !! और इसी उधेड़बुन में वह सो गई थी।
अगली शाम” मैरियट होटल” का प्रोग्राम था । सब वहीं अपनी गाड़ियों में आए ,और वेले पार्किंग के लिए गाड़ियां दे दीं। इससे पिछली रात के किस्से पर पर्दे पड़े रह गए थे। किसी को किसी दूसरे के बारे में कुछ मालूम नहीं था। सारे सवाल अनपूछे रह जाते थे । जो केवल और केवल मस्ती के आलम में डूबे रहने के लिए होते थे । शायद हफ्ते भर की दौड़-धूप और थकान मिटाने के यही जरिए थे।
उनका आपस में बेपर्दा था। उनकी सोच के हिसाब से उनका रहने का स्तर बहुत ऊंचा था। जहां शरीर या समाज के नियम , रिश्ते व धारणाएं आदिकाल के मानवीय संबंधों को मद्देनजर रखकर गढ़ी गईं थीं ।
हर पहलू को आवरणहीन करके प्रस्तुत करना क्योंकि असलियत यही है। लोग खुलापन आवरणहीनता पढ़ना व देखना तो चाहते हैं —लेकिन
सबके सम्मुख नहीं एकांत में !
दिन के उजाले में नहीं वरन रात के अंधेरे में !
खुले आंगन में नहीं वरन बंद कमरे में !
“समाज” शब्द का डर उनके भीतर हौव्वा बना रहता है । और यह तभी संभव हो पाता है जब उनके छुपे हुए क्रियाकलाप और समाज के मध्य एक मोटा पर्दा तना रहे।
होटल मेरियट से यह चारों जोड़ियां आधी रात को डॉक्टर करण के घर के बेसमेंट में आ गई थीं। बेसमेंट में थिएटर बना हुआ था। वहां जाम पर जाम चल रहे थे–क्योंकि सामने रोमांटिक टाइप फिल्म चल रही थी!
थोड़े बहुत स्नेक्स भी बाहर से मंगवाए गए थे नॉनवेज और प्रॉन्स ! पूरे अंधकार के आलम में हल्की सी नीली रोशनी छाई थी । मस्ती का खुमार सब पर छाया हुआ था। डॉक्टर करण और बिन्नी होस्ट थे, सो अपने दोस्तों का खूब ख्याल रख रहे थे। वैसे वहां बिछे मोटे मखमली कारपेट और मुलायम सोफे उनको गर्मा रहे थे।
पैम, इन सब से घबरा जाती थी लेकिन फिर सनी का कहना कि जिन लोगों के साथ हम हैं उनके जैसे ही चलने में अक्लमंदी है। तो वह पुनः बहक जाती थी। आखिर वह भी तो एक सामाजिक प्राणी है। उसे भी साथ चाहिए ! यह तो किस्मत की बातें हैं कि किसे कैसा साथ मिला । फिर भी उसे अपने आप पर ग्लानि होती थी !
यौन संबंधों की विकृतियों , शराब और सेक्स की आवृत्तियों से अब अतृप्ति , कुंठा , निराशा , आंतरिक टूटन आदि समाज की विसंगतियों, विद्रूपताओं को उद्घाटित करने के लिए अपने आप को वह विवश पा रही थी। ऐसी जगह आ गई थी कि वह बेबस थी।
इन सब में सबसे अधिक मस्त राजन था। जो कि रियल एस्टेट में काम करता था अर्थात प्रॉपर्टी डीलर था हिंदुस्तानी भाषा में। आयशा पंजाबी मुसलमान लाहौर से थी। बहुत ही खुले स्वभाव की, अपना पाकिस्तानी स्टोर चलाती थी।
अमेरिका पहुंचकर धर्म-कर्म का क्या अर्थ रह गया था यह तो पैम पहचान गई थी। फिर भी आयशा की रसोई में मसालों की कुछ खास ही महक होती थी , जो उनकी रसोई में मिसिंग थी। शायद मांसाहारी भोजन बनाने की उसकी अपनी ही recipes थीं। हाई सोसाइटी में मांसाहारी और सीफूड खूब चलता है–यह भी अमीरी की निशानियां है।
“बिन्नी” ABCD थी। यानी कि America born confused Desi. वैसे बहुत खूबसूरत और गोरी चिट्टी थी भारत जाकर डॉक्टर की विदाई कराकर डोली ले आई थी अमेरिका । तभी तो करण को inferiority complex था। करण का परिवार लुधियाना पंजाब में था । बिन्नी का कैलिफ़ोर्निया में । वहीं पली-बढ़ी थी । उसका एक ही तकिया कलाम था, “body is nothing.”
मीत और अनु वर्जिनिया टेक में इकट्ठे पढ़ते थे। दोनों स्टूडेंट विजा पर यू एस आए थे। अनु चंडीगढ़ की लड़की थी और अब smart bank officer थी। हर बात पर हंसते रहना उसका खास अंदाज था। जबकि मीत सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और अपनी कंपनी चलाता था। उस को बड़े-बड़े ऑर्डर्स मिलते थे।
प्रतिमा,
पैम… बच्चों की डॉक्टर यानि कि pediatrician थी। और संजय जिसे सब सनी बुलाते थे वह डेंटल सर्जन था। दोनों की ही बहुत कमाई थी। अपने साथ असिस्टेंट डॉक्टर भी इन्होंने रखे हुए थे। पैम अपने आप को इन सब के अनुरूप नहीं ढाल पा रही थी । अमेरिका में रहकर खूब मेहनत करना ,धन कमाना और चारित्रिक उत्तेजना में स्वयं की आहुति देना —उसे तर्कसंगत नहीं लग रहा था।
आसक्ति और विरक्ति का द्वंद्व उसके भीतर उथल-पुथल मचाए रखता था। इसके ऊपर जब वह देखती कि सनी को अनु की खनकती हंसी के समक्ष कुछ और नहीं दिखता है , तो बह मुरझा सी जाती थी। पैम सब समझते बूझते हुए भी अंजान बनी रहती थी। वह देखती थी मीत भी अपनी पत्नी को कनखियों से देखता हुआ शांत बैठा पैग सिप करता रहता है। उसे भी समझ आता था कि उसकी पत्नी सनी को आकर्षित करती रहती है-लेकिन किसी का किसी के ऊपर कोई बस नहीं चलता था। हर कोई आजाद था । किसी को कुछ भी कहने का कोई अधिकार नहीं था।
उधर करण तो हीन भावना से ग्रसित होने के कारण खूब पैग पर पैग चढ़ाता रहता था सबको देख देख कर । उसे लगता था शायद यही अमीरों का चलन होता है उसे भी बिन्नी की नजर में वैसा ही दिखना है।
सो, यह रहा इन सब का कच्चा चिट्ठा !
अब जवान औलादों को भरपूर पैसा और पूरी आजादी मिली होने से स्वच्छंद और उच्छृंगल होने में क्या देर लगती है? जब “आंवा” ही ऊता हो तो कुछ भी सही कैसे हो सकता है? पैम और सनी की जुड़वा बेटियां तनीमा (तनु) और ईरा भी व्यस्क थीं। दोनों बहने इकहरे बदन की काठी लिए सौंदर्य एवं लावण्यमयी रुप की स्वामिनी थीं। स्वभाव से तनु शान्त और गंभीर थी । वहीं ईरा चंचल व चतुर थी। तनु पापा के नक्शे कदम पर डॉक्टर बनने की तैयारी में थी वहीं ईरा मनोविज्ञान में Autistic kids पर मेजर करने की पढ़ाई कर रही थी। जबकि सनी और पैम दोनों को डॉक्टर बनाना चाहते थे।
‌‌ईरा अपनी मीठी मीठी बातों से बच्चों को लुभा लेती थी। वैसे भी वह Robin अमेरिकन लड़के से date कर रही थी। अमेरिका में बॉयफ्रेंड बनाना आम बात है। यह सब खुले आम चलता है। पैम , विष- बेल चढ़ती देख रही थी, और खिन्न थी किंतु कुछ कह नहीं पाती थी। उसे वहां के कानून ने यह हक़ ही नहीं दिया था।
डॉक्टर करण का बेटा आकाश डॉक्टर बन गया था। उसने अपनी ग्रेजुएशन पार्टी में तनीमा पर खूब डोरे डाले थे। सबको दिख रहा था। परिवारों में तालमेल तो वैसे ही था। अब दोनों की दोस्ती हो गई थी। वैसे भी यह लोग इकट्ठे ही बड़े हो रहे थे तो अच्छी तरह जानते थे एक दूसरे को। दोनों डॉक्टर बन रहे थे। पैम और सनी संतुष्ट थे।
‌‌कम से कम उनकी बेटी ने हिंदुस्तानी लड़के से दोस्ती की थी और वह भी अपने ही ग्रुप में । ‌उनके अपने चहेते दोस्त के बेटे के साथ। इन सब में प्रवासी होते हुए भी करण ही सबसे ज्यादा हिंदुस्तानी था और सभी भीतर से उसे बहुत पसंद करते थे। आकाश में अपने पापा का पूरा प्रभाव था। वहां पहुंचकर भारतीय दोहरी जिंदगी जीते हैं। उनकी जड़ें हिंदुस्तान में होती हैं और उनमें फल अमेरिका में लगते हैं।
ईरा को वह नहीं बचा पाए थे वहां की अंधी दौड़ से ! इसका उन्हें मलाल था। लेकिन उसके उज्जवल भविष्य की कामना करते रहते थे। हो सकता है रॉबिन उनकी आशा के अनुरूप निकले, एक धुंधली किरण थी वहां पे।
आकाश और तनु हर वीकेंड पर इकट्ठे कहीं न कहीं घूम रहे होते थे। करण और बिन्नी को भी जोड़ी पसंद थी। अब आकाश और तनु घूमने के लिए सैन फ्रांसिस्को जा रहे थे । इस पर दोनों के माता-पिता ने खुशी जाहिर करी। हवाओं का रुख उनके अनुसार बह रहा था। दोनों बच्चे आपस में मस्त थे। अब उनकी दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाएगी इससे वे उत्साहित थे।
उधर बाकी दोनों परिवारों में वैसे तो ईर्ष्या जन्म ले चुकी थी। परंतु–इस बेल को फलते- फूलते देखकर वह भी दिखावा करने में नंबर वन थे। असल में आकाश के भारतीय संस्कार करण की देन थे, इसलिए सब की पहली पसंद आकाश ही था। और उसे तनीमा पसंद आ गई थी।
खैर, बच्चों के जाने के बाद सब अपने काम पर बिजी हो गए थे। आज, पैम अपने डॉक्टर ऑफिस में कॉफी का कप लेकर बैठी ही थी कि फोन की घंटी टन टन बज उठी। रिसीवर को हाथ लगाते ही उसकी नजर सामने टंगी घड़ी पर चली गई। वहां वही टाइम था 4:44 यानी कि तीन चौके ! उसका हाथ कांप गया। वह आश्चर्य से भर उठी कि अब यह तीन चौके क्या गुल खिलाएंगे या फिर कुछ चेताएंगे..? चलो देखते हैं उसने सोचा और” हेलो “बोला।
उधर से अंग्रेजी में आवाज आई—
“मैं सार्जेंट रिक सैन फ्रांसिस्को से बोल रहा हूं। आप के बच्चों के आई – कार्ड मेरे पास हैं। उनका गोल्डन गेट ब्रिज पर एक्सीडेंट हो गया है।”
इतना सुनना था कि पैम गहरे सदमे से वहीं गिर पड़ी़। उसके हाथ से फोन छूट गया जिसे उसकी असिस्टेंट डॉक्टर ने पकड़ा और सारी मालूमात हासिल कीं। और डॉ सनी को आराम से बताया, साथ ही सार्जेंट का नंबर भी दिया। करण और बिन्नी के भी होश गुम हो गए थे। यह चारों अगली फ्लाइट से सैन फ्रांसिस्को जा रहे थे। सारे रास्ते विचारों में गुम वे चेतना शून्य व भाव-शून्य थे। गहन विषाद के चलते सबके होंठ सिल गए थे।
वहां पहुंचकर कुछ हासिल नहीं हुआ। आकाश सारे बंधन तोड़ कर विस्तृत आकाश में समा चुका था। किराए की कैब लेकर वे दोनों होटल से घूमने के लिए निकले थे। तनिमा की सारी जीवित शक्तियां मृतप्राय: हो चुकी थीं। वह कोमा में जा चुकी थी। एक जीवित लाश सामने पड़ी थी। वह थी भी ! और नहीं भी थी!!
उनके बच्चे हंसते खेलते उनसे विदा हुए थे ना जाने किस मनहूस घड़ी में ! कहर टूटा था इन सब पर ! वापिस पहुंचकर सबका जीवन वीरान हो गया था। वह महफिलें वो मस्ती अतीत के गहरे कुएं में दफ़न हो चुकी थीं। उनके दोस्तों की ईर्ष्या सहानुभूति में तब्दील हो चुकी थी । वे इन पर तरस खा रहे थे। और साथ ही ” हम बच गए” की भावना भी थी। समय की क्रूर चाल को देखकर वक्त भी ठहर गया था।
मन ही मन पैम 4:44 टाइम से दहशत खाती थी अब। उसे लगता था तीन चौके अनहोनी होने के पूर्व के संकेत हैं ! तनु के पास वह आराम कुर्सी पर लेटी थी थोड़ा बहुत खा कर कि आशा के विपरीत डॉक्टर धड़धड़ाती भीतर आई और उसने खबर दी कि तनु मां बनने वाली है। वक्त ने फिर अपने आप को दोहराया और उस वक्त भी घड़ी पर तीन चौके थे। 4:44 !!!
उसे लगा वह क्या समझे? यह शुभ हो रहा है या अशुभ? यह भी तो हो सकता है कि बच्चे की धड़कन के साथ तनु को होश आ जाए और वह ठीक हो जाए। उसके भीतर एक उम्मीद ने जन्म लिया। उसे आज 4:44 यानी कि तीन चौके भयावह नहीं, अल्हादकारी लग रहे थे। व्यक्ति की मन: स्थिति और परिस्थितियां उसे कुछ भी सोचने के लिए एक कारण दे देती हैं। तभी वह निष्कर्ष निकालता है।
बिन्नी ने यह सुनते ही कहा,”मेरा आकाश वापिस आ रहा है हमारा सूनापन भरने। ” दोनों माताएं जी जान से तनु की सेवा में लग गईं थीं उम्मीदों और आशाओं का दामन थाम कर। अब उनमें उत्साह आ गया था।
टैस्ट करने पर पता चला कि एक नन्ही कली खिलने वाली है उनकी बगिया में ! बिनी तो यह सुनते ही नाच उठी।पैम से बोली,” देख न पैम ! मेरे बेटे ने जाते-जाते मां के लिए निशानी छोड़ दी अब मैं फिर से उसके अंश को गोद में खिलाऊंगी। और उसे महसूस करूंगी।” उसने अपने घर में बहुत ही प्यारी नर्सरी तैयार कर ली और ढेर सारी शॉपिंग कर डाली अपनी आने वाली डॉल के लिए।
पैम तनु के पास बैठकर उस से ढेर सारी बातें करती , कि शायद वह सुन ले। महसूस करे और प्रतिक्रिया करे। उसकी उंगलियों को देखती, पकड़ती , मलती कि शायद कोई हरकत हो उनमें। Touch Therapy भी आजमाती थी। मां का कलेजा फटता था उसे इस हाल में देखकर।
समय पूरा होने पर नन्ही परी को सर्जरी करके बाहर निकाला गया। यह एक अनोखा केस था डॉक्टर के लिए। कि तभी तनु की गर्दन लटक गई। मानो वह बच्ची को संसार में लाने के लिए ही चंद सांसे लिए जी रही थी और उसे जीवन देकर वह अलविदा कह गई थी।
मानो,
“गढ़ आला पण सिंह गेला।”
इधर पैम, सनी, बिनी, करण, ईरा और कुछ दोस्त ऑपरेशन थिएटर के बाहर खड़े थे, कुछ शुभ सुनने के लिए। जबकि पैम थिएटर के बाहर बस चल रही थी इधर से उधर मानो एक बियाबान जंगल में अंधकार को चीरती नीलकंठ देखने को उतावली थी । जब उसे किसी पंछी के पंख फड़फड़ाने की हल्की सी आवाज आई तो वह एक नन्हे बच्चे के ‌रुदन में बदल गई । उसने कलाई पर लगी घड़ी को देखा वहां थे—4:44 यानी ” तीन चौके!”

डा. वीणा विज
13/9/2020

 

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