खड़ूस (कहानी)

  • खड़ूस
    “जब देखो तुम फोन पर चिपकी रहती हो!” वैष्णवी के पास से गुजरते हुए मनोज खिजे हुए से बाहर वराण्डे की ओर चले गए। उसे लगा शायद वे उससे कुछ बात करने आए थे। वह व्हाट्सएप पर आज के कुछ मैसेज़ चेक कर रही थी। उसे गिल्टी फील हुआ। वह मनु के पीछे-पीछे दौड़ी।
    “सॉरी, हां बोलो क्या बात है?”
    यह रोज का किस्सा था। मनोज जब भी बात करने आते ,उसे कहीं ना कहीं फोन पर व्यस्त पाते थे। लैपटॉप पर काम करना उसने छोड़ दिया था। फोन हैंडी लगता था उसे। फेसबुक पर उसे कॉलेज की उच्च जिनसे कभी दोस्ती थी, उनसे भी कन्नी काट लेते थे। हां, जिनसे कुछ काम होता बस उनसे कभी काम होने पर मिल लेते। लेकिन वैष्णवी आस- पड़ोस में ग़म -खुशी के मौकों पर पहुंचती, मंदिर, गुरुद्वारे, सत्संग और किट्टी पर भी जाती। वह स्वभाव से मिलनसार थी। उसकी सहेलियां उसे साथ ले जाती थीं। शायद यही घर- घर की कहानी थी, तभी तो वो लोग इकट्ठी होकर सिनेमा हॉल में मूवी देखने भी जाती थीं।
    मनोज कहते,” तुम जहां मर्जी जाओ पर मुझे तंग मत करो और ना किसी को घर लाओ कि मैं परेशान होऊं।” मनोज की नकरात्मक और एकांत की आदत को कैसे कुछ बदला जा सके, वैष्णवी यही सोचती रहती। आरव कैनेडा में और अनन्या अमेरिका में अपने परिवार सहित मस्त थे। वहां दोनों के पास एक- एक बार जाकर मनोज का मन भर गया था। वह लोग कभी वीडियो कॉल करते तो इन्हें वह भी मुसीबत लगती क्योंकि मनोज अपना बेस्ट दिखाना चाहते थे हर समय। अब बुढ़ापे में डेंचर उतरा हो तो चेहरा अजीब लगेगा ही, वह डैंचर के बगैर कभी किसी के सामने आज तक गए ही नहीं थे, इसलिए डैंचर लगा कर बात करनी होती थी तो मुसीबत ही लगनी थी। जबकि वैष्णवी को वीडियो कॉल के बगैर बात करना अच्छा ही नहीं लगता था। इसी बहाने बच्चे दिख जाते थे और उदासी कम हो जाती थी। यह वही समझ सकते हैं जिनके बच्चे बाहर गए हुए हैं और मां-बाप उनके बिना रहते हैं ,वह भी बुढ़ापे में!
    एक बार मनोज यूं ही बात कर रहे थे,” जवानी की इमेज अच्छी लगती है। अब इस उम्र की फोटो किसी को नहीं दिखानी चाहिए।”
    यह सुनकर वैष्णवी का माथा ठनका। हो ना हो इनके भीतर यह इंफिरियारिटी कॉन्प्लेक्स आ गया है–बुढ़ापे को लेकर। तभी तो मनोज बुड्ढे लोगों के साथ बैठकर राजी नहीं थे। इस उम्र की स्वेटर उसी जवानी की बुनाई से बुनी जा रही है। जबकि हर वय की अपनी गरिमा और अपना सौंदर्य व सम्मान है। जिसे मनोज समझ नहीं पा रहे हैं। उल्टे उसको ब्यूटी पार्लर जाने की याद दिलाते रहते। फलानी साड़ी उस पर फबती है–यह भी बता देते कभी-कभार।
    “किट्टी में यह सूट अच्छा नहीं लगता, वो पीला पहनो न!”
    यह सुनकर वैष्णवी हर्ष मि‌श्रित हैरानी से खिल सी जाती थी। उसे समझ आ गया था कि वह बाहर जाती है तो मनोज उसै सुंदर लगती देखकर मन ही मन प्रसन्न होते हैं। एक बार –किसी के घर में पाठ का भोग था। वहां दोनों को जाना जरूरी था, तो उसने कहा था,” इस चैक्क कमीज के साथ सफेद पेंट खूब जांच रही है आप पर।” तिस पर मनोज ने वैष्णवी की ओर तारीफ से देखा। अब तो वैष्णवी ऐसे मौके की तलाश में रहती। वो बात और है कि ऐसा मौक़ा ही कम मिलता था।
    ऐसी खीज टी वी सीरियल लगाते ही फिर स्पीड पकड़ लेती। पीठ पीछे खड़े होकर बोलना शुरु कर देते ,
    ” तुम क्या गहने, कपड़े और घर के लड़ाई -झगड़े की साजिशों के तरीके देखती रहती हो इनमें ? क्या मिलता है तुम औरतों को एकता कपूर के ड्रामों में?”
    वैष्णवी चिल्लाकर कहती,”मैं सोनी टी वी
    देखती हूं। इसमें एकता कपूर कहां से आ गई ? सारा दिन मैं टी वी के पास नहीं आती। सहेलियों के बीच बात करने को कोई सीरियल तो देखूं ? रात को दो घंटे तो देखने दिया करो।”
    मनोज दूसरे कमरे में जाकर टी वी पर न्यूज़ सुनने लग जाते। वैष्णवी सोच में डूब जाती कि कहीं न्यूज़ पर चर्चा करने को मनोज उसे अपने पास तो नहीं बैठाना चाहते! घर में कोई और तो है नहीं इसलिए वह अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए किसे ढूंढें?
    उसको अपमानित करके यह कहना,” तुम्हें फलां- फलां न्यूज़ भी नहीं मालूम! तुम औरतों का दिमाग एक ही तरफ दौड़ता है! कुछ खबरों का भी ध्यान रखा करो”!(बायस्ड है वह औरतों के लिए) अच्छी खासी डांट पेल देते। पर फिर सोचती, नहीं मनोज तो बात भी नहीं करते। सो, चुप्पी ही भली। अपन चुपचाप अपना सीरियल देखते हैं। हालांकि उसे धुकधुकी लगी रहती कि ना मालूम कब आकर क्या बोल दें।
    आज के युग में चिड़िया का घोंसला छोड़कर पंख निकलते ही चिड़िया के बच्चे अपनी मर्जी के पेड़ पर जाकर घोंसला बना लेते हैं और वहां आराम से रहते हैं। चिड़िया और चिड़ा दाना लाते हैं और गुटर गूं करते समय बिताते हैं। वैष्णवी के घोंसले में भी तो गुटर गूं चल रही थी। वह तो यही हाथ जोड़ती रहती कि जमाने के दौर को देखते हुए उसके बच्चों की आपस में बनी रहे और कोई मुसीबत ना खड़ी हो जाए। पड़ोस के शर्मा साहब का बेटा उनके पास आ गया है क्योंकि उसकी बीवी ने बच्चे रख लिए हैं और उसे निकाल दिया है। वह डिप्रेशन में है। गली के नुक्कड़ में चौधरी साहब का घर है। बहुत शानदार कोठी है लेकिन बहू ने केस कर दिया है। बेचारे अपनी और बेटी की जान मुश्किल से छुड़ा पाए हैं। अपनी कुछ प्रॉपर्टी बेच कर दो करोड़ रूपया देना पड़ा। बेचारी मिसेस चौधरी ने सब किटियां छोड़ दीं, मिलना- जुलना छोड़ दिया और घर के भीतर बंद दीवारों के पीछे गुम हो गई हैं। कसूर आ जाता है “वक्त” के सिर पर! कि उनका वक्त खराब चल रहा है।
    मनोज ने देहरादून में किसी जमाने में एक जमीन ले कर रखी थी तो कहने लगे,” मैं उसे डिस्पोज ऑफ करना चाहता हूं । मैं कुछ दिनों के लिए वहां जा रहा हूं देखूं क्या है आजकल उसकी मार्केट वैल्यू । कोई खरीदार भी है कि नहीं,” कहकर अपना जाने का प्रोग्राम बना लिया। नौकर और कामवाली बाई के होते हुए भी मनोज के जाने से एक सूनापन सा घर में भर गया था। बच्चे भी अपने जीवन में व्यस्त चल रहे हैं कभी-कभी पूछ लेते थे कि सब ठीक है ना मां!
    उधर मनोज सोने से पूर्व नियम पूर्वक छोटी सी बात कर लेते हैं। मैं तो सोचती थी कि मज़े से अब सीरियल देखूंगी और मस्त रहूंगी लेकिन अब वह धुकधुकी नहीं लगती कि मनोज कभी भी आकर कुछ भी बोल देंगे— मज़ा ही नहीं आ रहा जीने का।
    व्हाट्सएप चेक करते हुए अचानक चौंक कर मुंह उठाकर ऊपर देखती हूं तो कोई नहीं दिखाई देता। लगता है अचानक से मेरे पास पहुंचकर मनोज मुझे सरप्राइज़ दे रहे हैं पर वह मेरा वहम होता है! माना कि बुढ़ापे को बुढ़ापा नहीं समझना केवल नंबर मानना है उम्र को लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मनोज भी आकर यही कहेंगे कि यार मजा नहीं आया किसको टोकता तुम जो नहीं थी पास। अकेले जीना भी कोई जीना है लल्लू ?
    हम दोनों को एक दूसरे की लत जो लग गई है। मनोज को टोकने की … और मुझे खीझने की और चिढ़ने की!
    जीवन का सन्यास आश्रम चल रहा है लेकिन अरण्य में वनवास तो नहीं है ना!
    “बहुत मिस कर रही हूं तुमको मेरे खड़ूस!!!”वीणा विज’उदित’

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