कोहरे के पार
रूहेमा अपने दाऊ के साथ जब राजपाल अंकल के घर पंजाब आई , तो वहाँ का माहौल शान-शौकत भरा साथ ही सादगी भरा देखकर उसका चित्त खिल उठा | उसके ख़्वाबों-ख़्यालों में ऍसा ही घर तो बसा था |उसके अपने टोहाणा (हरियाणा) के घर में पैसा बहुत था | क्लास की कमी साफ दिखाई देती थी | जो क्लास अंकल के घर के रहन -सहन में स्पष्ट दिखती थी |उनके दोनो बेटे शौर्य और आर्यन व बेटी ऊना मायो काँलेज आँफ अजमेर से पढे थे |रूहेमा भी सेकरेट हार्ट शिमला के बोर्डिंग में रहकर पढी थी |उन सभी का बोल-चाल अपने सदृश्य पाकर वह प्रफुल्लित थी |
रूही (रूहेमा) छरहरे बदन की सीधी-सादी लड़की थी| वह शान्त व स्थिर , बहुत धीमे स्वर में बात करने वाली थी |वह ढीले -ढाले सलवार- कमीज़-चुन्नी पहनती थी क्योंकि उसे बेढंगे कपड़े और गहने पहनने पसंद नहीं थे |उसके चेहरे का ओज व निश्छल भाव
बरबस ध्यान आकर्षित कर लेता था| बात करते हुए उन्मुक्त हँसी का भाव उसको विशेष बना जाता था |
चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेरे वह सारे घर में घूम रही थी कि मीरा आंटी ने उसे प्यार से अपने पास बैठाकर उसकी कुशल – क्षेम पूछी |वे मीठी आवाज़ में बोल रहीं थीं |उनके बड़े से कमरे में श्री श्री रविशंकर जी की आदमकद पेंटिंग बीचों -बीच रखी हुई थी | जिसके चरणों में ताजे फूल चढे हुए थे | साथ ही आर्ट आफ लिविंग की किताबें करीने से सजी रखी थीं |मिसेस राजपाल आर्ट आँफ लिविंग में पूरी तरह से रंगी हुई दिखीं |वहाँ से निकल अगले कमरे में लायब्रेरी दिखी | अल्मारियों में कला व साहित्य का भंडार , घर वालों की रुचि बता रहे थे | एनसऐक्लोपीडिया भी रखे थे | अंग्रेज़ी नाटकों की वहाँ ढेरों पुस्तकें थीं |बातों से पता चला कि शौर्य का यही शौक है |
रात को खाने के नाम पर सूप, सैलड, बिना छोंक की दाल , उबले चावल, सौते की हुई सब्ज़ियाँ व चार-साढे चार इंच के डायामीटर की रोटियाँ थीं |वे भी बिन घी की | हाँ, आँलिव आयल की गंध भोजन से उठ रही थी |रसोईघर दोपहर को डेढ बजे व रात को आठ बजे बंद हो जाता था |अलबत्ता फल आदि काट कर , व फलों का ताजा जूस दिन में दो बार सर्व किया जाता था |उस घर में सबका स्वास्थ्य अच्छा था| किसी के बदन पर चर्बी नहीं थी |एकदम नए युग का परिवार !
रूही को यह सब भा गया था |उसके यौवन के उड़ते पंख इसी डाल पर टिककर घोंसला बनाने को मन ही मन ललायित हो उठे थे | शौर्य भी बहुत स्मार्ट था | सफेद कुर्ता -पायजामा और उस पर बिन बाँहों की वास्केट उसके ऊँचे कद पर खूब फबती थी |तिस पर चश्मा उसके व्यक्तित्व की गरिमा बढा देता था |शौर्य के साथ शेक्सपीयर के नाटकों की चर्चा व ऊना के साथ होस्टल की बातें साँझी करके रूही का मन खूब लग गया था | उधर दोनों दोस्तों की पारखी दृष्टि ने बच्चों को इतनी आत्मीयता से मिलते व बातें करते देखकर उनकी मनःस्थिती को भाँप लिया था रूही के दाऊ चौधरी हीरालाल का बहुत रुतबा था | अजीबो-ग़रीब शान-शौकत थी | ढेरों मिलें, क्रशर, और पेट्रोल पम्प थे हरियाणा में जगह-जगह | चुनाव में मोटी रकम दान में देते थे |राजसी ढंग का रहन-सहन था , आधुनिकता से एकदम विपरीत | रूही को इस सब से घुटन होती थी |यहाँ उसे उन्मुक्त व स्वछन्द वातावरण का एहसास हो रहा था | दाऊ की राजपालजी से गहरी दोस्ती थी | राजपालजी के पंजाब व हरियाणा में कई होटल व सिनेमाघर चलते थे | वे भी तग़ड़े रईस थे | मिनिस्टरों के साथ उठना- बैठना था उनका | दाऊ किसी काम से दो दिनों के लिए अपने दोस्त के पास आए थे |रूही को भी घुमाने की खातिर साथ ले आए थे |
आँखों में सतरंगी सपने सजाए रूही वापिस आ गई | उसे पता ही नहीं चला कब उसके सतरंगी सपनों ने हकीकत का जामा पहन लिया |वह खुशियों की धूप व गरमाईश लिए दुल्हन बनी मनवांछित डाल के घोंसले में दाना चुगने सदा के लिए विदा कर दी गई | उसे कोई सरोकार नहीं था कि लोग ऍसी शानदार शादी को बरसों तक याद रखेगें | उसकी झोली में तो मनचाही मुराद डाल दी गई थी | शौर्य की बलिष्ठ बाहों में समाते ही रूही के भीतर एक उद्दाम आवेग ! तूफान ला देने वाला आवेग हिलोरे मारने लगा | उसकी भावनाओं के ज्वार-भाटे में ऍसा उतार-चढाव महसूस हुआ , जो अन्तस में पहुँच कम्पन पैदा करता है | जैसे कोई अबशार (झरना) राह में आए रोड़ों से टकराता अपना मार्ग प्रशस्त करता आगे बढता जाता है ,रूही के मनोःमस्तिष्क में ऍसे ही आवेग उमड़ रहे थे | जिस निरंतर प्रवाह में वह बह रही थी , क्या शौर्य भी ?—वह समझ नहीं पाई कि यह प्यार था या केवल पैशन–! अलबत्ता शौर्य ने उसे जता दिया था कि २-३ वर्ष तक वे माँ-बाप नहीं बनेंगे | अपने उद्दीपितृ ऋगों में स्वप्नदर्शी लालिमा और पलकों पर सपनों के भवन सजाए वह शौर्य के अंग-संग थी |शौर्य अपनी दिनचर्या यानि कि जब देखो लायब्रेरी में किसी न किसी लेखक से माथापच्ची करने में व्यस्त रहता था | रूही जब भी उसे खोजती वहाँ पहुँचती , स्वयं भी एकाध किताब पढने को उठा लाती थी |तकिए पर सिर रखे पढते-पढते दोनों किताबों में सिर दिए यूँ ही सो जाते थे |रात भर ख्वाब में सूनी सड़कों पर वो शौर्य को आवाज़ देकर पुकारती रहती थी | जो समय रोमांस का होता था वो तो लायब्रेरी में सजे मुर्दे ले लेते थे उनका |पढते-पढते कभी शौर्य बाहर दीवान पर या कभी लायब्रेरी के सोफे पर सोया मिलता था| ऊना अपने घर जा चुकी थी |आर्यन विदेश जा चुका था |बिज़नेस सारा पापा देखते थे |शौर्य अपने में ही मस्त रहता था | उसके दोस्तों का दायरा भिन्न था| काँलेज में रूही का मेजर फिलौसफी था | सो , उसकी बातों से दार्शनिकता झलकती थी |उस दायरे में वो फिट थी |दोनों हर महफिल में दोस्तों की जान होते थे | शहर के जाने -माने युवा वर्ग व इन सब का एक ‘आर्टिस्ट-क्लब ‘ बना हुआ था , जिसकी गोष्ठी हर शनिवार को होती थी | जिसका कर्ता-धर्ता शौर्य ही था |प्रति वर्ष दिसम्बर में हरवल्लभ महा संगीत-सम्मेलन के बाद ये अपने एक अंग्रेज़ी नाटक का मंचन देश भगत यादगार हाँल में करते थे | अपने शहर व पंजाब के बुद्धिजीवियों और विशिष्ट अतिथियों को निमंत्रित किया जाता था| इसमें सम्मिलित होना गर्व समझा जाता था |
शौर्य और रूही ढेरों अंग्रेजी नाटकों की पुस्तकें देश-विदेश से मँगवाते ,पढते फिर नाटकों का विवेचन होता | एक नाटक चुनकर , रोल बाँटे जाते फिर दिन-रात रिहर्सलें होतीं | पात्रों के अनुरूप ड्रेसेस बनवाईं जातीं थीं | और जब तक नाटक का मंचन नहीं होता था, खूब व्यस्त रहते थे सब | दोनों पति-पत्नी का संसार यहीं तक सीमित था |होते -होते शादी के दो वर्ष बीत गए |ऊना के बेटी थी जो एक वर्ष की थी |अब इन्होंने भी चाहा कि परिवार बढाएं, लेकिन इसी तरह पाँच वर्ष का अरसा भी देखते-देखते बीत गया | रूही की सास को अपने पूजा-पाठ -ध्यानादि व शिविरों में जाने के अलावा और कोई ध्यान नहीं था |जबकि रूही की माँ बहुत चिन्तित थीं | उनका रूढिवादी विचार था कि जब तक एक बच्चा न हो जाए वैवाहिक जीवन के पैर ज़मीं पर नहीं टिकते | लड़की के जीवन में स्थिरता नहीं आ पाती |इसके विपरीत रूही वास्तविकता से कोसों दूर थी | अपनी ओर से वह पति की इच्छा के अनुरूप जीवन जी रही थी | पर , उसे लगना शुरू हो गया था कि शौर्य की आँखों में उसके प्रति वो आकर्षण व प्रेम नहीं रह गया था | इस सोच से वो अकेले में सिसक उठती थी | लगता, वह सर्द-दिल बाशिन्दों की बस्ती में जी रही है , जहाँ उसकी सिसकियाँ सुननेवाला कोई नहीं है | असल में वह असंवेदनशील ,आत्माविहीन लोगों से घिरी महसूस करती थी |सोने पे सुहागा ये हुआ कि एक नई जोड़ी-तरुण व उसकी पत्नी कोमल हाई पोस्ट पर तब्दील होकर पंजाब आए और इनके क्लब के सदस्य बन गए |
तरुण स्मार्ट व शान्त था , जबकि कोमल खिलखिलाती हँसी से खुशनुमा माहौल बना देती थी | वह बेहद बेतकल्लुफ किस्म की थी |उसका सामीप्य खुशियाँ बिखेर देता था |वह असीम विश्वास के साथ पटर-पटर इंगलिश बोलती थी |शौर्य को उसका साथ भाने लग गया और वह उसके मोहपाश में बँधता चला गया |धीरे-धीरे नाटक की रिहर्सलें देर तक करने के बहाने उन दोनों मियाँ-बीवी ने डिनर वहीं करना शुरू कर दिया | घर का अनुशासन धरा का धरा रह गया था, क्योंकि वे देर रात तक वहीं रुकने लग गए थे | शौर्य का रुझान कोमल की ओर बढ रहा था , दोनो की दोस्ती प्रगाढ हो चली थी , जो सब को दिखाई देने लगी थी | इस वर्ष नाटक के मंचन के पश्चात शौर्य अपने गुरू के पास पांडुचेरी में स्थित अरविन्दो आश्रम जाने का प्रोग्राम बनाए बैठा था | उससे बढती नज़दीकियों के फलस्वरूप कोमल भी शौर्य के साथ जाने को उतावली हो उठी | तरुण और रूहेमा एक-दूसरे को हैरान – परेशान हो तक रहे थे | कोमल की ज़िद के आगे तरुण को झुकना ही पड़ा | रूहेमा भी साथ जाना चाह रही थी | शब्द -यह कहने को होठों पर आकर ठहर भी न पाए थे कि यह सब देख भीतर की ओर फिसल गए | वह टकटकी लगाए शौर्य को देखती मौन वहीं की वहीं खड़ी रह गई |औ–र , वे दोनों चले गए |तरुण भी मन की न कह , रूही के चेहरे के उतार-चढाव को तकता रह गया |
अब–? रूही ने सोचा वह एक महीने के लिए माँ के पास चली जाती है, तब तक शौर्य भी वापिस आ जाएगा | माँ ने बेटी के गले लगते ही उसके दिल की धड़कन सुन ली |सारी बातें सुनकर वे डर गईं | उसकी नादानी पर वे बहुत खीझीं व रोईं |रूही के मन के भीतर स्थित वीरानियों का कोना उसे वहाँ सब के बीच में भी अकेलेपन का एहसास कराता रहता था | वह जिद करके अपने घर वापिस आ गई | यहाँ आकर वह भीतर व बाहर दोनों तरह से तन्हा हो गई थी |कभी -कभार डैडी उसको बुला लेते थे, व स्नेह जताते थे| नहीं तो उसकी संवेदनशीलता इस कटु सत्य से दो-चार हो रही थी कि उसका अपना यहाँ कोई नहीं है | तन्हाई में महीना काफ़ी लम्बा हो गया था, लेकिन शौर्य के आने के बाद भी तन्हाई मीलों लम्बी हो गई थी | इतने बड़े घर में शौर्य अब कहीं भी सो जाता था | वह बिस्तर पर भी अकेली रह गई थी |वो सारी-सारी रात जगी रहती , नींद उससे कोसों दूर थी |जब किताबें भी नींद लाने में सफल न हुईं ,तो रूही ने नींद की गोलियों का सहारा लिया | गोलियों के असर से जब कभी वो ११-१२ बजे तक सोई रह जाती , तो कोई भी उसे देखने या उठाने नहीं आता था | घर में उसका होना या न होना कोई माने नहीं रखता था | उसकी माँ बनने की चाह –सदा के लिए अधूरी रह गई थी |काश् उसने शौर्य का कहा न माना होता ! अब तो वो उससे दू उउ र जा चुका था| रूही के चेहरे पर उदासी के सायों ने डेरा जमा लिया था|
वक्त अपनी चाल से आगे सरक रहा था | ऊना दूसरी डिलीवरी के लिए आई थी |उसे भी कोमल के स्वच्छंद व्यवहार ने अपने प्रभाव से ग्रस लिया |ऊना भी रूही की उपेक्षा कर कोमल के साथ हँसती -बोलती थी |ऊना के दूसरी बेटी हुई | रूही बच्चों के साथ व्यस्त रहने लगी |उसका मातृत्व उमड़ पड़ा था | लेकिन शौर्य को बच्चों के साथ कोई लगाव नहीं था |वह स्वंय-केन्द्रित रहता था |उन्हीं दिनों राजपालजी का अचानक हार्ट-फेल हो गया |विदेश से आर्यन आया |पता चला ,उसने विदेशी लड़की से वहीं शादी कर ली है |इस ख़बर से कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं थी घर में |आज ऊना को लग रहा था कि हमारी भारतीय संस्कृति ही उचित है |इतना माँडर्न भी क्या होना कि किसी को किसी से घर में मतलब ही नहीं |पर—तीर तो कमान से बरसों पहले निकल चुका था |
तेरहवीं तक सब रिश्तेदार थे |रूही की सास ने उसके भाई को अकेले में बुलाकर कहा कि रूही ड्र्ग्स(नशा) लेती है | इसे यहाँ से ले जाओ| हमने अब इसे और नहीं रखना है |पर इस तरह ले जाओ कि रूही को पता न चले |रूही के सर पर ऍसा कोहरा छा रहा था कि उसके नादान भाई ने उससे पूछने की ज़रूरत ही नहीं समझी कि क्या बात है? या वो किन हालात से गुज़र रही है | आख़ीर नशे की नौबत आई ही क्यों? उनको ‘हाँ’ कहकर वो माँ व दाऊ के साथ वापिस चला गया | रूही के माँ व दाऊ एक-दो साल के लिए आसाम जा रहे थे नई मिल लगाने के चक्कर में | सो, वे और नहीं रुके | कुछ दिनों बाद रूही के भाई का फोन आया कि वह उसे लेने आ रहा है | ऊना अभी वहीं थी | दोनों ने रूही के भतीजे के लिए चीज़ें खरीदीं |रूही बेहद खुश थी कि उसे भाई लेने आ रहा है | सास और भाई की मिलीभगत से अन्जान वो कुछ दिनों के लिए चली गई | भाई ने फ्लाइट दिल्ली पहुँचते ही उसे गोहाटी (आसाम) की फ्लाइट पर बैठा दिया कि पहले माँ-दाऊ के पास हो आओ | मजबूरन रूही को भतीजे को देने के लिए लाए उपहार भाई के हाथ देने पड़े | रूही के आसाम पहुँचने तक उसने दाऊ को सारा प्लान बता दिया | उनके पाँव के नीचे से तो ज़मीन ही खिसक गई सब कुछ सुनकर | कुछ दिनों तक वे शान्त रहे |रूही को प्रसन्न करने का यत्न करते रहे | जब रूही ने वापिस जाना चाहा , तो उसे बता दिया कि उसकी सास ने उसे घर से निकालने के लिए षडयंत्र रचा था | वहाँ उनका फोन अब कोई नहीं उठाता था |जीवन वीरानियों का डेरा बन अपनी प्राणवत्ता खो देता है |लेकिन उसके वीरान व निरूद्देश्य जीवन को उसके दाऊ ने एक उद्देश्य दे दिया था | उन्होंने अपनी मिल के वर्करों व मज़दूरों के बच्चों के लिए एक स्कूल खोला और उसे रूहेमा को सौंप दिया |उद्धघाटन पर भैया आया तो पता चला कि राजपालजी का घर बिक गया है |शौर्य और कोमल पाण्डुचेरी रहने चले गए थे ,राजपाल आंटी बिस्तर पर सोई की सोई ही चली गईं थीं प्रभु चरणों में |
रूहेमा का जीवन जो घने कोहरे से घिर गया था , वह उस कोहरे के पार निकल उजालों का प्रकाश अपने स्कूल के बच्चों में फैला रही थी | इतने बच्चे पाकर उसका जीवन बदल गया था |तभी स्कूल की घंटी बजी ,रूहेमा अपने ख्यालों से बाहर लौटी |
वीणा विज ‘उदित’